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5 Sep 2025, Fri

Khategaon News: राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस: पर विशेष सितारों तक सपनों की उड़ान खातेगांव प्रतिनिधि प्रदीप साहू से खास बातचीत

Khategaon News: National Space Day: Special conversation with Khategaon representative Pradeep Sahu on the occasion of flying dreams to the stars
फोटो: लेखिका शिवनी गुप्ता बेड़ा

प्रदीप साहू, Khategaon News: 23 अगस्त 2023 केवल एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास का सुनहरा अध्याय है। उस दिन जब चंद्रयान-3 चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरा, तब न केवल अंतरिक्ष की सतह पर नया निशान बना, बल्कि हर भारतीय के दिल में एक नया आत्मविश्वास भी जन्मा। यह घटना केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी, यह उस राष्ट्र की पहचान थी जो सीमित संसाधनों के बावजूद असीमित सपने देखता है। यही कारण है कि इस दिन को अब राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है—एक ऐसा दिन जो हर भारतीय को याद दिलाता है कि असंभव भी संभव है।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस: पर लेखिका अधिवक्ता शिवानी गुप्ता बेड़ा प्रोफेसर, विद्यासागर कॉलेज, खातेगांव
निवासी: ग्राम बांगड़दा, ज़िला देवास म.प्र पूर्व छात्रा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, रायपुर ने इस विशेष अवसर पर हमारे प्रतिनिधि प्रदीप साहू के साथ चर्चा में बताया कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी शॉर्टकट का परिणाम नहीं थी, यह संघर्ष, धैर्य और अदम्य साहस की कहानी है। जब 1969 में इसरो की स्थापना हुई, तब देश गरीबी और संसाधनों की कमी से जूझ रहा था। प्रयोग शालाएं साधारण थीं, उपकरणों की कमी थी, और कई बार वैज्ञानिक साइकिल और बैलगाड़ी से रॉकेट के हिस्से ढोते थे। लेकिन सपना इतना बड़ा था कि कठिनाइयां छोटी पड़ गईं। 1975 में आर्यभट्ट उपग्रह ने जब अंतरिक्ष में प्रवेश किया, तब पूरी दुनिया ने समझा कि भारत ठान ले तो चमत्कार कर सकता है।

विज्ञान और तकनीक केवल प्रयोगशाला की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहते। उन्होंने भारत की सामाजिक और आर्थिक दिशा बदली है। मौसम उपग्रहों ने किसानों की मदद की, संचार उपग्रहों ने शिक्षा को गांव-गांव पहुंचाया, और आपदा प्रबंधन में उपग्रहों की भूमिका ने लाखों जिंदगियां बचाईं। यही कारण है कि राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस केवल वैज्ञानिकों का दिन नहीं है, बल्कि हर किसान, हर विद्यार्थी, हर उस नागरिक का दिन है जिसने विज्ञान से जीवन में सुधार पाया है।

भारत की प्रगति में महिला वैज्ञानिकों का योगदान विशेष रूप से प्रेरणादायक है। चंद्रयान और मंगलयान जैसी परियोजनाओं में सैकड़ों महिला वैज्ञानिकों ने दिन-रात काम किया। यह संदेश पूरे समाज को देता है कि बेटियां केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, वे सितारों तक पहुँचने की क्षमता रखती हैं। ग्रामीण भारत की लड़कियों के लिए यह प्रेरणा है कि अगर शिक्षा और अवसर मिले, तो कोई सपना अधूरा नहीं रह सकता।

यहाँ शिक्षा संस्थानों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। आज भी मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के गाँवों में कई बच्चे और विशेषकर लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती हैं। जब तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों में विज्ञान शिक्षा को मजबूती नहीं मिलेगी, तब तक “हर घर शिखर” का सपना अधूरा रहेगा। राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस हमें यह याद दिलाता है कि वैज्ञानिक सोच केवल शहरों तक सीमित न रहे, बल्कि गाँव-गाँव तक पहुँचे।

हमारे संविधान का अनुच्छेद 51(A)(h) हर नागरिक को यह जिम्मेदारी देता है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और खोज की भावना को अपनाए। इसका सीधा मतलब है कि विज्ञान केवल वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर भारतीय की। जब कोई बच्चा सवाल पूछता है, जब कोई विद्यार्थी प्रयोग करता है, जब कोई ग्रामीण किसान नई तकनीक अपनाता है—तब वह इस संवैधानिक दायित्व को पूरा करता है।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस यह भी सिखाता है कि असफलता अंत नहीं होती। 2019 में ़चंद्रयान-2 लैंडर जब चाँद पर नहीं उतर पाया, तो पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे प्रधानमंत्री खुद इसरो वैज्ञानिकों को गले लगाकर बोले—“हिम्मत मत हारो।” उस असफलता ने हमें और मजबूत बनाया और चंद्रयान-3 की सफलता उसी असफलता से सीखे गए सबक का परिणाम है। यही जीवन का सत्य है—गिरना, उठना और और भी मजबूती से आगे बढ़ना।

आज भारत केवल चाँद तक सीमित नहीं है। गगनयान मिशन से भारत अपने अंतरिक्ष यात्री भेजने की तैयारी कर रहा है। आदित्य-L1 सूर्य के रहस्यों को समझने निकला है। आने वाले वर्षों में भारत अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन भी बनाएगा। यह सब केवल विज्ञान नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने की उड़ान है।

इस यात्रा का सबसे भावुक पहलू यह है कि यह हर भारतीय को गर्व और आत्मविश्वास देती है। जब कोई ग्रामीण बच्चा आसमान की ओर देखता है, तो अब उसे सिर्फ तारे नहीं दिखते, बल्कि अपने सपनों की झलक दिखती है। जब कोई छात्रा किताब में रॉकेट की तस्वीर देखती है, तो उसे यह विश्वास होता है कि “मैं भी ऐसा कर सकती हूँ।” राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस हर दिल में यही संदेश जगाता है—“आसमान सीमा नहीं है, बल्कि नई शुरुआत है।”

विज्ञान केवल तकनीक का नाम नहीं है, यह सोच का नाम है। यह हमें सिखाता है कि सवाल पूछो, तर्क करो, प्रयोग करो और आगे बढ़ो। यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाज को अंधविश्वास से मुक्त करता है और विकास की ओर ले जाता है। जब तक हर घर में शिक्षा और हर बच्चे के मन में जिज्ञासा नहीं होगी, तब तक राष्ट्र की प्रगति अधूरी रहेगी।

आज जरूरत है कि हम विज्ञान को केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रखें। हमें विज्ञान को जीवन का हिस्सा बनाना होगा। हर परिवार को यह समझना होगा कि शिक्षा केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण और समाज परिवर्तन का आधार है। राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस इसी सोच का उत्सव है—जहाँ विज्ञान, शिक्षा और सपने मिलकर एक उज्जवल भारत का निर्माण करते हैं।

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